हम क्या और क्यों कर रहे हैं?
मित्रों,
बीते साल 2015 को आज ही तारीख यानि दस अक्टुबर को भोपाल के एक बड़े भवन से बवंडर उठा था। कोशिश थी कि इस बवंडर की चपेट में “शक्ति संगठन” आ जाए और तहस-नहस हो जाए। यह कोशिश तो नाकाम हो गई, लेकिन हां थोड़ा जख्मी जरूर कर दिया। ये जख्म अपनों के दिए हुए हैं, इसलिए इन्हें भरने में थोड़ा समय लग गया। बहरहाल अब “शक्ति संगठन” अब पहले से ज्यादा मजबूत और सुरक्षित है। क्योंकि उस बवंडर ने हमें जख्म दिया, लेकिन साथ में अपने-परायों की पहचान करवा दी। ऐसे कई चेहरे सामने आए जो बवंडर उठने के बाद दूर खड़े दिखाई दिए। बवंडर के दौरान कुछ बाहर खड़े दिखाई दिए। कई सारे जयचंदों का पता चल गया। कई दोहरे चेहरे वाले लोगों के चेहरों से नकाब उतर गया। बाद में इन दोहरे चरित्र वाले लोगों ने खूब अफवाह फैलाई कि “शक्ति संगठन” का एक बंद होने की कगार पर पहुंच चुके संगठन में विलय हो गया है। खैर यह अफवाह थी और अफवाह रहेगी। लेकिन कोशिश अब भी जारी है।
लेकिन हमारी कोशिश तब भी सकारात्मक थी और अब भी सकारात्मक है। उस दिन भी हम साथ मिलकर काम करने का प्रस्ताव लेकर गए थे, लेकिन गले लगाकर पीठ में छुरा खोंप दिया। “शक्ति संगठन” के शरीर के साथ इसकी आत्मा भी लहुलुहान हाे गई। फिर भी हम डिगे नहीं। बल्कि धीमे और मंद से गति से अंदरूनी तौर पर काम जारी रखे रहे। वफादार युवाओं की टीम तैयार की और एक बार फिर “शक्ति संगठन” नए स्वरूप में आपके सामने आने के लिए तैयार है। वो नया स्वरूप क्या होगा, उसके बारे में भी मैं बहुत जल्दी बताऊंगा। बहरहाल अभी बात हो रही है कि “शक्ति संगठन” की स्थापना और बीते साल में घटित हुई घटनाओं के बारे में।
मित्रों हमने तो पहले दिन ही इस नारे के साथ “शक्ति संगठन” की शुरूआत की थी कि जिनके ऊपर जिम्मेदारी है, वे सो रहे हैं और उन्हें जगाना है। हमने बीते सात साल में यही काम किया और काफी हद तक कामयाब भी हो गए। हालांकि ये कुछ प्रतिशत ही है। लेकिन आशाएं जागी हैं। मसलन अब अब हर सप्ताल बैठकें होने लगी, जिलों में प्रवास शुरू हो गए। यही तो कहते थे हम, लेकिन तब हमें गलत करार दिया। हालांकि प्रदेश के समझदार लोग खुलकर इस बात का समर्थन करते हैं कि जबसे “शक्ति संगठन” सक्रिय हुआ, बाकी को भी काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
अब सवाल यह है कि आखिर इस सक्रियता से समाज का भला क्या हो रहा है और इन दिनों “शक्ति संगठन” क्या कर रहा है। तो आपको कुछ बातें बिंदुओं में बताता चलूं।
01 - बीते काफी से सोशल मीडिया में एक्टिव नहीं हूं, लेकिन बीच-बीच में समाज को आरक्षणा और सर्टिफिकेट से नौकरी करने वालों को बचाने वाले कई सारे संदेश मिलते रहे हैं। लेकिन मैं कहता हूं कि आज भी समाज का कोई भला नहीं हुआ। आदिवासी का आरक्षण दिलाने का दावा करने वाले लोग विदिशा में समाज को ओबीसी के भीतर लाने के बारे में बात नहीं करते हैं। शिवपुरी में रावत सामान्य बने हैं, उनकी इन्हें चिंता नहीं है। इन्हें चिंता है प्राेपगंडे की, जिसमें समाज के लोगों को बरगलाया जा सके। मुझे तो हंसी आती है जब अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य भोपाल में नियमित दौरे के लिए आते हैं तो लोगों को बुलाया जाता है कि आ जाओ राजधानी यहां आरक्षण बंट रहा है। लोग बेचारे आ भी जाते हैं। बाद में फिर वाहवाही ली जाती है कि हमने आयोग से मुलाकात कर ली, बस आरक्षण मिलने ही वाला है। अच्छी बात है। मिल जाएगा तो सम्मान करने वालांे में “शक्ति संगठन” सबसे आगे रहेगा। फिर इसके बाद विधानसभा और मंत्रीमंडल में अफसर-कर्मचारियों के हित में आदेश निकलवाए जाते हैं और जताया ऐसे गया, जैसे पूरी समाज को आरक्षण मिल ही गया।
02 - मंत्रीमंडल के जिस फैसले की बात की जा रही है वह बीते तेरह साल में कई बार िनकल चुका है कि जो लोग सिराेंज सब-डिवीजन के मूल-निवासी हैं वहां से जिनका सर्टिफिकेट बना है, केवल वे ही सुरक्षित कार्यवाही से सुरक्षित रहेंगे। यानि बाकी के ऊपर यथावत कार्यवाही जारी रहेगी। दूसरा अहम सवाल कि जो लोग आदिवासी के प्रमाण पत्र की मदद से वर्ष 2005 तक सरकारी सेवाओं में आए हैैं, उनको इस बात का कोई फायदा नहीं मिलने वाला। वे अभी भी संकट में है। लेकिन इस मुद्दे को इसलिए तूल नहीं देना चाहते हैं कि यह समाज के उन लोगों का है जो हमसे भी जुड़े हुए हैं। लेकिन दुख तब होता है जब सरकारी आदेश निकलवाने के नाम पर अड़ी डालकर चंदा लिया जाता है और उसका कोई हिसाब नहीं होता।
03 - चलिए हम बधाई देते हैं कि एक काम आपने बहुत अच्छा कर दिया कि सरकारी आदेश आदिवासी के प्रमाणपत्र पर नौैकरी करने वालों के पक्ष में निकलवा दिया। ठीक है पुन: बधाई। लेकिन इसमें पूरे समाज का भला कहां हुआ। जिन अफसरों के लिए यह पूरी कवादय की जा रही है, उनमें से कितने लोग समाज के लिए धर्मशाला, छात्रावास और अन्य काम कर रहे हैं? हां अमृत जी, महेंद्र जी, वृंदावन सिंह जैसे अफसर हैं जो खुलकर समाज के हित में काम करते हैं। मैं इन्हें सेल्यूट करता हूं। लेकिन बाकी का समाज में क्या योगदान। हो सकता है योगदान दे रहे हो तो वो दिखाई क्यों नहीं देता?
04 - इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि भोपाल में छात्रावास के लिए मिली जमीन का यूं ही बंजर पड़े रहना। यह जमीन वर्ष 2009 में समाज को मिली और 2012 तक इसकी किसी ने सुध नहीं ली। नियमानुसार तीन साल तक सरकार से मिली जमीन पर यदि कोई निर्माण नहीं करते हैं तो वह लैप्स हो जाती है। “शक्ति संगठन” के सदस्यों ने यह बात सब बड़े-बुजुर्गों को समझाई भी, लेकिन हाय रे कोई क्याें समझेगा। इस बीच उसी जमीन पर मिसरोद पुलिस ने अपना बोर्ड लगाकर कब्जा दिखा दिया। फिर से सभी जिम्मेदारों को बताया। अखबार में खबर प्रकाशित कराई, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। तब “शक्ति संगठन” ने अपने हाथ में कमान ली और पहले पुलिस का कब्जा हटवाया और फिर तीन वर्ष की अवधि पूरी होने के पहले निर्माण शुरू कर दिया। यह प्रतीक स्वरूप था। इसके बाद फिर से सबको बुलाया कि आइए मिलकर काम करते हैं, लेकिन वहां तो अहंकार (ईगो) आड़े आ रहा था। अपना वर्चस्व डोलता दिख रहा था। आखिरकार नहीं आए। हमने काम शुरू किया और एएसपी अमृत मीना वो पहले शख्स थे, जिन्होंने आगे बढ़कर एक लाख रुपए इस पुनीत कार्य के लिए दिए।
05 - काम जोर-शोर से शुरू हुआ, लेकिन फिर सहयोग करने की बजाय असहयोग आंदोलन चलाया गया। पहले नोटिस भेजे गए और जब उसमें फैल हो गए तो मिटटी बेचने और जमीन पर कब्जे करने जैसे झूठे आरोपों को फैलाने का सिलसिला शुरू हुआ। “शक्ति संगठन” के सदस्य जहां जाते, वहीं यह बात। प्रमाण किसी के पास नहीं, लेकिन हर आदमी के दावे उतने ही मजबूत। आखिरकार वो काम रुक गया और बैसमेंट भी रेडी नहीं हो पाया। एक बार संयुक्त समिति बनाकर काम करने के लिए सबको बुलाना चाहा, लेकिन कोई नहीं आया। यह भी कहा कि चलिए आप कर लीजिए तो वो भी नहीं करना। ये कुछ-कुछ केजरीवाल के बच्चे वाले चुटकुले जैसा हो रहा था कि उसके शिक्षक ने उसे सुधारने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं सुधरा।
06 - कई लोगों का सवाल होगा कि तो फिर आप लाेग यानि “शक्ति संगठन” क्यों फैल हो गया तो कई सारे जवाब मैं ऊपर दे चुका हूं, लेकिन फिर इतना बताना चाहूंगा कि सभी युवा साथ अपने करियर की व्यस्तताओं के कारण पहले ही समय देने से इंकार कर चुके थे। जिन सदस्यों पर घर-घर जाने की जिम्मेदारी थी, वे इनके केजरीवालों के आरोपों से इतने तंग और आहत हुए कि काम छोड़कर घर बैठ गए। आखिरकार काम ठप हो गया। यहां एक बात साफ हो गई कि छात्रावास का निर्माण सभी के साथ आए बगैर होगा नहीं और लोग साथ आएंगे नहीं।
07 - समाज के जो लोग अधिकारी हैं और जो संगठनों शीर्ष पर विराजमान हैं, उनके बच्चे कान्वेंट स्कूलों में और अच्छे कॉलेजों में पढ़कर अपना भविष्य बना रहे हैं। लेकिन इसी समाज के वे लोग जिनके पास नाम मात्र की जमीन है और घर चलाने के लिए भी पैसा नहीं, उनके बच्चों को आपने क्या सुविधाएं दी। आज इस भोपाल शहर में समाज के किसी भी आदमी को ठहरने के लिए एक कमरा तक नसीब नहीं होता। जिस समाज के 100 परिवार हैं, उनकी भी धर्मशालाएं हैैं, लेकिन हम जो 40 लाख होने का दावा करती है उनके द्वारा राजधानी में एक छात्रावास नहीं बनाया जा सका।
08 - “शक्ति संगठन” ने मिशन 2018 चलाया तो उसकी कॉपी कर ली। “शक्ति संगठन” ने रोजगार, स्वरोजगार की बात की तो उसकी कॉपी शुरू। लेकिन यह तो बहुत अच्छा है कि चलो कुछ तो सदबुद्धि आई। लेकिन दोस्तों क्या आपने किसी भी विधानसभा के अंदर धरातल पर कोई काम देखा, सिर्फ सोशल मीडिया को छोड़कर। क्योंकि कॉपी करने में सिर्फ कॉपी ही कहलाती है और मूल तो वही कर सकता है, जिसने आइडिया की ईजाद की हो। आप तो एक बार और एक देख लीजिएगा कि जब टिकिट मांगने की बारी आएगी तो तथाकथित संगठन के एक ही व्यक्ति और एक ही परिवार के नाम होंगे। उनकी तैयारी भी शुरू हो गई। भगवान उनकी इच्छा पूरी करे। लेकिन प्रदेश वासियों आप इस भ्रम में मत रहना कि आपको टिकिट मिल जाएगी। मिल जाए तो इससे बढ़कर खुशी की बात कुछ नहीं हो सकती। आखिर मकसद तो हमारा भी वही है। लेकिन फर्क इतना है कि “शक्ति संगठन” का कोई काेर मेम्बर अपने लिए टिकिट या फायदा नहीं चाहता, क्योंकि इनका फुल टाइम काम समाज के नाम पर राजनीति करना नहीं, बल्कि अपने काम करना है। वहीं इनके लिए प्राथमिकता में है। यही कारण तो है कि दो साल पूरे होते नहीं और “शक्ति संगठन” का प्रदेशाध्यक्ष इस्तीफ देकर नए चेहरे को अवसर देने की बात करने लगता है। यहां पद की लालसा किसी को नहीं है। लेकिन अब संख्या की लालसा भी किसी को नहीं है। वहीं दूसरी तरफ से एक ही परिवार और दो व्यक्ति का पूर्णत: कब्जा है, जैसे उन्होंने रजिस्ट्री करवा लो हो। बाकी सब पिछलग्गु हैं। चंदा देने वाले या फिर दरी उठाने के लिए।
09 - कई लोग आरोप लगाते हैं कि “शक्ति संगठन” आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरह काम करता है। यह आरोप नहीं, बल्कि पूरा कथन ही सही है। लेकिन गलत यह है कि जब इसे इस प्रकार बताया जाता है कि “शक्ति संगठन” की यह शैली कांग्रेसियों के लिए घातक है। लेकिन कैसे घातक है, यह यह कोई नहीं बता पाता। चलिए अब इस सवाल का जवाब दीजिए कि तथाकथिक वरिष्ठ संगठन क्यों भाजपाईयों के बंगले पर पड़ा रहता है। इनके यहां तो जो कांग्रेस के जमाने में कांग्रेस के नाम पर कसम खाते थे, आजकल भाजपा के नाम क झंडा लेकर घूम रहे हैं। एक जनाब ने तो एक साथ तीन मंत्रियों को साथ रखा है। ये साहब सुबह, शाम और रात की शिफ्ट में भाजपा के मंत्रियों के यहां बैठते हैं। नाम जानकर क्या करोगे, इतना समझ लोग कानून के धंधे से जुड़े हैं।
10 - लेकिन हम कथन मानते हैं कि “शक्ति संगठन” की शैली कुछ-कुछ आरएसएस जैसी है, क्योंकि वहां संगठन चलाना सिखाया जाता है और नया नेतृत्व तैयार किया जाता है। हम भी इसी मिशन में लगे हैं। हमारे 25 साल के युवा धारा प्रवाह भाषण देने लगे हैं और वहां आज भी गुस्से में ही बोलते हैं। यहांं यह बता दूं कि हम अब इसी एजेंडे पर काम करेंगे। हमने कांग्रेस के यूथ कंाग्रेस के विधानसभा और लोकसभा अध्यक्ष वाले कांसेप्ट को भी उठाया है। “शक्ति संगठन” को जहां जो बेहतर मिलेगा, उसे अपनाते जाएंगे।
11 - यदि समाज में पूर्व से प्रशिक्षण और संगठन में काम करने की शैली विकसित होती तो आज पुराने हो चुके संगठन लेटरहेड पर प्रदेश के राज्यमंत्री और विधायकों के नाम अध्यक्ष के नीचे नहीं लिखे जाते। इन बेचारे विधायक और राज्यमंत्री की बिसात आज भी नीचे ही है। जो वर्तमान राज्यमंत्री का सिर्फ इसलिए विरोध करते थे कि समाज का दूसरा विधायक मंत्री बन जाए आज वे ही सबसे ज्यादा उनके नजदीक दिखाई देते हैं। खैर इससे “शक्ति संगठन” की सेहत पर असर नहीं पड़ता, मगर मन में उन विधायक के लिए दुख है, जिनको आजकल पूछा तक नहीं जाता।
12 - “शक्ति संगठन” मीणा समाज को नया नेतृत्व देने के लिए निरंतर काम कर रहा है और करता रहेगा। “शक्ति संगठन” के सदस्य पहले काम करते हैं और फिर बताते हैं। उदाहरण के लिए “शक्ति संगठन” बीते एक साल से भोपाल में छात्रावास चला रहा है और सभी कोर सदस्य (डॉ. जीवन सिंह, हरि सिंह, रामगोपाल, हिम्मत सिंह, जीतेंद्र डोबभाल, राम घुनावत, राजू मीणा, दीनू मीना, रामसेवक और दीपेश मीना समेत अन्य) इस प्रोजेक्ट को लीड कर रहे हैं। संगठन के बाकी साथियों क पूरा सहयोग हैै। इस प्रोजेक्ट में अब तक इंदौर के रवि वर्मा जी, भोपाल के जीतेंद्र डोबवाल जी, उज्जैन के अनंतनारायण जी, भोपाल के ही निवासी ईएनसी एनके सीराह साहब, समाज सेवी सूरज सिंह मारण और आशा-हरि सिंह जारेड़ा जैसे लोगों का सहयोग मिल चुका है। लेकिन कहीं भी इसका ढिंढोरा नहीं पीटा। रिजल्ट तो अपने अाप बोलेगा कि उसमें कितने अंक परीक्षा देने वालाें को मिले हैं। जिस दिन ये चार बच्चे पढ़कर मुकाम हासिल कर लेंगे, उस दिन “शक्ति संगठन” के सदस्यों को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
13 - “शक्ति संगठन” नियमित प्रशिक्षण वर्ग, अभ्यास वर्ग और बैठकें कर रहा है, लेकिन जिनको बताना होता है उन्हें बता दिया जाता है। ढिंढोरा पीटने का “शक्ति संगठन” का शौक नहीं रहा, क्योंकि “शक्ति संगठन” का काम्पटीशन “शक्ति संगठन” से ही है। हमें बस 100 युवाओं की आवश्यकता है, लेकिन ऐसे कि वे 100 लाख लोगों का नेतृत्व कर सकें। हम मिशन 2018 पर काम कर रहे हैं और हर विधानसभा से एक मजबूत आदमी चुनेंगे। अभियान जारी है। ढिंढोरा पीटने की कहानी बंद है।
आखिर में धन्यवाद देता हूं कि उस 10 अक्टूबर की तारीख को जब “शक्ति संगठन” के विलय की फर्जी और नाकाम कोशिश की गई। क्योंकि उस “शक्ति संगठन” के कंधों के ऊपर लदे कई दोहरे चरित्र वाले लोगों से मुक्ति मिल गई। धन्यवाद।
अब “शक्ति संगठन” एक बार फिर जोश में है और आने वाले 9 नवंबर को “शक्ति संगठन” अपने आठवां स्थापना दिवस मनाएगा।
साथ में हम आभारी हैैं, उन लोगों के जो वाकई दिल से “शक्ति संगठन” के हर घड़ी में जुड़े रहे। आने वाले समय में आप ही “शक्ति संगठन” के कर्ता-धर्ता होंगे।
.. निरंतर।
“शक्ति संगठन”
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