आज आप अपने जीवन के एक दिन का सौदा करेंगे...
कि इसके बदले में आपका क्या मिलेगा? इसलिए जितना संभव हो सके, उतना ही इसे उत्पादक बनाइए। मान लीजिए की आपका यह दिन शेष जीवन एक पहला दिन है। बेहतर होगा कि आप अपने बीते हुए दिन को किसी खूंटी से बांध दें और मान लें कि वह अतीत खत्म हो चुका है। अब आप भविष्य में जाने के लिए स्पीड का बटन दबा दें। आपका 'आज' न तो आपके अतीत की गलतियों में दिलचस्पी रखता है और न ही भविष्य में होने वाली घटनाओं से विचलित हो रहा है। यह अपने आप में एक स्वतंत्र दिन है और अपने आपमें एक अवसर है। इसलिए आप अपने 'आज' का का ख्याल रखें और इसी के दम पर अाप अपने पूरे जीवन का ध्यान रख सकते हैं।
मसलन किसी चीज के पीछे जो भावना छिपी होती है, यदि आप उसे पहचान लो तो वह उपहार बन जाती है, अन्यथा उस भावना को नहीं समझा तो वह एक वस्तु मात्र बनकर रह जाएगी।
जैसे यदि आप अपने माता-पिता के लालन-पालन में छिपी भावना को पहचान लेते हैं तो वह बचपन उपहार लगने लगेगा। शिक्षा तब उपहार लगेगी, जब आप शिक्षक की भावना को पहचान लेंगे। दोस्त कोई चीज उपहार नहीं होती, बल्कि उपहार तो आपका नजरिया है, जो उस चीज के पीछे छिपी भावना को पहचानने में मदद करती है।
इसीलिए आपका जो 'आज' है वह एक उपहार ही है। जिस तरह हर उपहार कोई न कोई देता है, उसी प्रकार 'आज' ईश्वर ने आपको दिया है। यानि इसका सीधा अर्थ है कि आप पिछला दिन जी चुके हैं और कल रात में जो लोग सोए थे, उनमें से कई सारे आज जाग नहीं पाए हैं। लेकिन आप न केवल 'आज' जागे हैं, बल्कि काम भी कर रहे हैं। यानि ऊपर कोई है, जिसने आपको 'आज' उपहार में दिया है। तो मित्रों जो चौबीस घंटे आपको मिले हैं, उनके पीछे भगवान मीनेष की भावना को पहचानिए। जैसे भगवान मीनेष वेदों, ऋषियों की रक्षा की है, वैसे ही वह आपकी रक्षा कर रहा है। यदि आप 'आज' का सदउपयोग नहीं कर पाते हैं या दुर्व्यवहार करते हैं तो यह उस देने वाले के विरुद्ध होगा। आप दाता को धोखा देंगे, यदि 'आज' का इस्तेमाल ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं।
मीनेष पुराण में लिखा है कि "उठो और हर उस शख्स या वस्तु या दैवीय शक्ति का आभार प्रकट करिए, जिससे हमने थोड़ा बहुत भी सीखा है। यदि आप बीमार हैं तो सोचिए कि आप जीवित तो हैं।
मित्रों अक्सर लोग मुझसे सवाल करते हैं कि आप अपनी नौैकरी में समय देने की बजाय समाज के काम में क्यों वक्त बर्बाद करते है। तब मेरा जवाब होता है कि पैदा होते ही मुझे माता-पिता का नाम मिल गया और मिला यह मीणा सरनेम। जिसकी बदौलत पूरे समाज में मुझे एक अलग नजर से देखा गया। मुझे परिवार से मिला है एक गौत्र, जिसकी वजह से मेरा विवाह हुआ। इसलिए मुझे समाज से मिले इस उपहार का ऋण चुकाना है। चूंकि मुझे कल का इंतजार नहीं है तो मैं 'आज' ही इस काम को समाप्त् कर देना चाहता हूं। सोचता हूं कि कल का दिन मुझे मिले या नहीं, पता नहीं। लेकिन 'आज' का जो दिन मिला है, उसमें बेहतर क्या कर सकता हूं।
मित्रों ईश्वर से प्रार्थना करें कि मेरा यह दिन मुझे आपकी तरफ से मिला हुआ उपहार है और इस दिन को मैं इस तरह से जिऊंगा कि वह मेरी तरफ से आपके लिए उपहार होगा।
मित्रों उठिए और लग जाइए काम से। वक्त कम है और काम ज्यादा।
धन्यवाद
आपका
- भीम सिंह सीहरा
पत्रकार, लेखक, विचारक, चिंतक, ब्लॉगर, राइडर, ट्रैवलर, मोटीवेटर, सोशल वर्कर और अब प्रदेशाध्यक्ष।
मसलन किसी चीज के पीछे जो भावना छिपी होती है, यदि आप उसे पहचान लो तो वह उपहार बन जाती है, अन्यथा उस भावना को नहीं समझा तो वह एक वस्तु मात्र बनकर रह जाएगी।
जैसे यदि आप अपने माता-पिता के लालन-पालन में छिपी भावना को पहचान लेते हैं तो वह बचपन उपहार लगने लगेगा। शिक्षा तब उपहार लगेगी, जब आप शिक्षक की भावना को पहचान लेंगे। दोस्त कोई चीज उपहार नहीं होती, बल्कि उपहार तो आपका नजरिया है, जो उस चीज के पीछे छिपी भावना को पहचानने में मदद करती है।
इसीलिए आपका जो 'आज' है वह एक उपहार ही है। जिस तरह हर उपहार कोई न कोई देता है, उसी प्रकार 'आज' ईश्वर ने आपको दिया है। यानि इसका सीधा अर्थ है कि आप पिछला दिन जी चुके हैं और कल रात में जो लोग सोए थे, उनमें से कई सारे आज जाग नहीं पाए हैं। लेकिन आप न केवल 'आज' जागे हैं, बल्कि काम भी कर रहे हैं। यानि ऊपर कोई है, जिसने आपको 'आज' उपहार में दिया है। तो मित्रों जो चौबीस घंटे आपको मिले हैं, उनके पीछे भगवान मीनेष की भावना को पहचानिए। जैसे भगवान मीनेष वेदों, ऋषियों की रक्षा की है, वैसे ही वह आपकी रक्षा कर रहा है। यदि आप 'आज' का सदउपयोग नहीं कर पाते हैं या दुर्व्यवहार करते हैं तो यह उस देने वाले के विरुद्ध होगा। आप दाता को धोखा देंगे, यदि 'आज' का इस्तेमाल ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं।
मीनेष पुराण में लिखा है कि "उठो और हर उस शख्स या वस्तु या दैवीय शक्ति का आभार प्रकट करिए, जिससे हमने थोड़ा बहुत भी सीखा है। यदि आप बीमार हैं तो सोचिए कि आप जीवित तो हैं।
मित्रों अक्सर लोग मुझसे सवाल करते हैं कि आप अपनी नौैकरी में समय देने की बजाय समाज के काम में क्यों वक्त बर्बाद करते है। तब मेरा जवाब होता है कि पैदा होते ही मुझे माता-पिता का नाम मिल गया और मिला यह मीणा सरनेम। जिसकी बदौलत पूरे समाज में मुझे एक अलग नजर से देखा गया। मुझे परिवार से मिला है एक गौत्र, जिसकी वजह से मेरा विवाह हुआ। इसलिए मुझे समाज से मिले इस उपहार का ऋण चुकाना है। चूंकि मुझे कल का इंतजार नहीं है तो मैं 'आज' ही इस काम को समाप्त् कर देना चाहता हूं। सोचता हूं कि कल का दिन मुझे मिले या नहीं, पता नहीं। लेकिन 'आज' का जो दिन मिला है, उसमें बेहतर क्या कर सकता हूं।
मित्रों ईश्वर से प्रार्थना करें कि मेरा यह दिन मुझे आपकी तरफ से मिला हुआ उपहार है और इस दिन को मैं इस तरह से जिऊंगा कि वह मेरी तरफ से आपके लिए उपहार होगा।
मित्रों उठिए और लग जाइए काम से। वक्त कम है और काम ज्यादा।
धन्यवाद
आपका
- भीम सिंह सीहरा
पत्रकार, लेखक, विचारक, चिंतक, ब्लॉगर, राइडर, ट्रैवलर, मोटीवेटर, सोशल वर्कर और अब प्रदेशाध्यक्ष।
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