समझ में नहीं आता कि दहेज बेटी को दिया जाता है कि समाज को?
*_पत्रकार भीम सिंह मीणा (सीहरा) की कलम से..._* इन दिनों विवाह आयोजनों का दौर चल रहा है। हमारे समाज के भी कई लड़के-लड़कियों के विवाह हो चुके हैं और खरमास लगने के पूर्व काफी विवाह संपन्न हो जाएंगे। जिस भी शादी में जाओ जम कर धूम नजर आती है। चारों तरफ रोशनी ही रोशनी। खूब सारा धूम धड़ाका। भव्य वैवाहिक आयोजन। कई जगह तो राजशाही ठाट भी देखने को मिल जाते हैं। यदि बेटी की शादी हो तो पिता और भाई अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। करना भी चाहिए बेटियां कुछ और तो लेकर नहीं जाती, केवल उनके विवाह में ही हम खर्च करते हैं। इसमें कोई बुराई वाली बात नहीं है। हां मितव्यता बरते तो यह उस परिवार के लिए अच्छा है। खैर यह एक निजी विषय है। *लेकिन इन सबके बीच में एक बात ऐसी है जो ध्यान आकर्षित करती है और खटकती भी है।* _जब आप किसी शादी में जाते हैं और जैसे ही मुख्य द्वार से प्रवेश करके मंच के सामने पहुंचते हैं तो आज भी मंच के दाएं या बाएं तरफ बहुत सारा सामान जिसे हम दहेज के नाम से जानते रखा दिखाई देता है।_ यह सामान वधू पक्ष वाले वर पक्ष को देते हैं। मकसद हम सब जानते हैं कि सामान का इस्तेमाल हमारी बहन या बेटी अपने ससुराल में करें और एक अच्छा जीवन जी के उसे हर सुख सुविधा मिलना चाहिए। यह भी ठीक है इसमें कोई गलत नहीं है कि हम अपनी बेटी के भविष्य की चिंता करें और उसे अच्छा सामान दे। *लेकिन जो सामान हम अपनी बेटी को देने वाले हैं उसका प्रदर्शन समाज के सामने करने का कोई तुक समझ में नहीं आता है!* _जिस सामान का उपयोग हमारी बेटी उसके घर में करने वाली है उसे समाज के सामने रखकर यह बताना कि हम कौन सा TV, कौन सा फ्रिज, कौन सी वाशिंग मशीन, कौन सा बेड अपनी बेटी को देने वाले हैं इसका मतलब क्या है?_ साथियों यह समस्या मेरी बहन की शादी में भी आई थी। लेकिन मैंने अपने पिताजी से साफ कहा कि कुछ भी हो जाए मैं दहेज का प्रदर्शन नहीं करूंगा। पूरा सामान खरीद कर अपने घर में रखा। बहन का विवाह भोपाल शहर के सबसे बड़े होटल से किया, लेकिन एक भी सामान होटल में नहीं रखा। इस बीच किसी ने दहेज में दी जाने वाली कार को सजा कर सामने खड़ा कर दिया। यह बात मुझे बाद में पता चली तो भी मैं ने इसका विरोध किया। *लोगों ने कई तरह की बातें भी बनाई और कहा कि क्या बेटी को कुछ नहीं दे रहे हैं?* मैंने इन सवालों के कोई जवाब नहीं दिया और कहा कि आप विवाह में आए हैं तो आयोजन का आनंद उठाइए। खैर शादी हुई और बहन विदा होकर अपने ससुराल चली गई। 2 दिन बाद हम अपनी बहन को निभाने के लिए उसके ससुराल गए तो यह देखा कि पूरा दहेज आंगन में जमा हुआ है। मैंने इसका कारण पूछा तो बताया गया कि यार इतना शानदार दहेज दिया है तो लोगों को पता तो चलना चाहिए। चुंकि सामान जमा चुके थे और समझाने का कोई मतलब नहीं रह गया। बहरहाल मेरे दामाद समझदार थे और उन्होंने मेरी भावनाओं को समझा और कहा कि वह इस मिशन में हमेशा मेरे साथ रहेंगे।
मैं लोगों को समझाता हूं कि हमें दहेज का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। _इसके कई सारे कारण हैं।_ *सबसे बड़ा कारण है कि जब हम दहेज के सामान का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं तो उस पर कई तरीके टीका-टिप्पणी होती है।* _यदि सामान हल्का है तो लोग कहते हैं क्या घटिया सामान दिया है और बरात में आने वाले ही दूल्हे का मजाक उड़ाते हैं।_ *ऐसे में वह पिता और भाई जो बेटी के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा कर दहेज खरीद लाए वे खुद को लज्जित महसूस करते हैं।* _दूल्हा भी शर्मसार होता है और कई बार तो वह भड़क कर सबके सामने विरोध भी करने लगता है।_ वहीं यह सामान देखकर दूसरे लोग प्रेरित होते हैं और मन ही मन में ठान ते हैं कि इस से भी बढ़िया सामान वह अपनी बेटी को देंगे। *लेकिन उनकी मंशा बेटी को अच्छा सामान देने से ज्यादा समाज के सामने प्रदर्शन की होती है।* _महिलाएं भी सामान देखकर हर तरह की बात बनाती हैं कि किस ने क्या दिया वह थोड़ा ढंग का तो देते।_ *अचानक से जो दहेज बेटी की सुविधा के लिए दिया गया है वह एक परेशानी का कारण बन जाता है।* जबकि वही दहेज शांतिपूर्ण तरीके से खरीद कर सीधे बेटी की ससुराल पहुंचा दिया जाए तो किसी को कोई दिक्कत नहीं होगी और बेटी उसका इस्तेमाल आराम से कर सकेगी। *यदि मेरी बात में दम लगे तो मेरा समर्थन करते हुए इस संदेश को वायरल करिएगा।* _यदि बात में कोई दम ना हो तो मुझे मेरे WhatsApp नंबर 8770444639 पर अपने विचार भेजना ना भूलें।_
*(लेखक मीणा समाज शक्ति संगठन के प्रदेश अध्यक्ष हैं और भोपाल दैनिक भास्कर में बतौर सीनियर रिपोर्टर पदस्थ हैं।)*
_यह लेख आप तक मीणा समाज शक्ति संगठन की आईटी टीम द्वारा पहुंचाया जा रहा है।_
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